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शाम


आज शाम फिर आई है लेकिन उस गाने की तरह खाली हाथ नहीं आई. अपने साथ दिन भर के छोटे पत्ते और रात की गहराई लेकर आई है. आनेवाली कल की हलकी सी घड़ियाँ और बीते हुए कल की भरे हुए पन्नों को एक साथ बाँध कर आई है. अब इन्हे अलग करना तुम्हारा काम है. किसी के साथ होनेवाली सारी बातें और किसी और से अनकही सच्चाइयाँ को अपने बदन पर लपेटे हुए आई है. क्या तुमने कभी दोपहर को आसमान में चाँद को चमकते हुए देखा है? यह शाम भी कुछ ऐसी ही है. यह खाली हाथ तो कभी आती नहीं लेकिन लौट जाती है बिलकुल बेफिकर और मासूम बनकर. मैंने एक बार इसका पीछा करने की कोशिश की थी पर वह मेरे उँगलियों से निकलते ही गायब हो गयी. बिलकुल उस तरह जैसे सुबह का सपना आँख खुलते ही बिस्तर के सामने सफ़ेद दिवार में बदल जाता है. जो देखा था अब धुंदला सा नज़र आता है और उसकी जगह एक वीरान सी तस्वीर दिखती है. कभी कभी मैं सोचती हूँ की काश मैं भी इस शाम की तरह गायब हो सकूं. इस ज़िन्दगी से निकल जाने का सबसे आसान रास्ता यह शाम ही तो है. बाकी सब मैं या तो कुछ ज़्यादा उजाला सेहन करना पड़ता है या तो घुटन सी अंधेरेपन को. मैं कल शाम फिर एक बार कोशिश करूंगी.          

The Cloudcutter

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